एक कविता – हे भगवान विश्वकर्मा !

हे भगवान विश्वकर्मा !

आप ही हो निर्माण एवं सृजन के भगवान

आप ही हो देवताओं के शिल्पी या Engineer और Architect

प्राचीन काल में सब राजधानियाँ आपका ही है achievement

सत्य युग के ‘स्वर्ग लोक’

त्रेता युग की ‘लंका’

द्वापर युग की ‘द्वारिका’

कली युग का ‘हस्तीनापुर’

ये सब सुंदर और अनुपम नगरी  आपका ही देन हैं

ज्ञान-विज्ञान में पारंगम, सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाधिपति आप हैं

हे ब्रह्मांड के दिव्य वास्तुकार ! आपका जय हो

जय हो विश्वकर्मा जयंती जो समर्पित है आप पर

आपके सम्मान में…

 

कल-कारख़ाना हम बंद रखते हैं

आपकी मूर्ति, पूजा के लिए स्थापना करते हैं

प्रफुल्लित हो कर कल-पुरजों को साफ करते हैं

माहौल बन जाता है दिव्य और आनंदमय

मिलता है काम करने का नया जोश

आपकी आशीर्वाद से दूर होता है भय

आपकी आशीर्वाद से हो जाते  हैं  निर्भय

आपके आशीर्वाद से और भी नया कला कौशल सीखेंगे

हाथ का काम दिखा के पेट पालेंगे और नाम कमाएंगे

कारीगर, Engineer ना हो तो कोई भी देश बढ़ नहीं सकता

कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता

लगन के साथ हम काम करते जाएँ

हे प्रभु ! आशीर्वाद जरूर आप देते जाएँ

व्यापार में तरक्की भी होता जाए…

हे प्रभु ! हे भगवान विश्वकर्मा

आप ना होते तो इतनी सुंदर यह धरती क्या हो सकती?

धन्य है आपकी कलाकारी, धन्य है आपकी कलाकारी।

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                                                                                             हिन्दी कवि – रतिकान्त सिंह