कभी कभी सही मौके पर खुद का पीठ खुद ही थप थपाना चाहिए । शायद, आप लोग भी इस पर सहमत होंगे । खुद का वैबसाइट पर आज मेरा पहला हिन्दी ब्लॉग छपेगा । मैं आज बहुत खुश हूँ । मैं चाहता हूँ कि मेरे वैबसाइट और ब्लॉग के जरिये मैं कमाल करूंगा और तहलका मचाऊंगा । अपना दिल कि इस बात को एक लघु कविता के माध्यम से आप तक चार लाइनों मे व्यक्त कर रहा हूँ….
तहलका
शेर का बच्चा है तू
जिगर बडा है तेरा ।
साहित्य कि दुनिया में आ ही गया है तू
अब मचेगा टहलका तेरा ।
Tahalka
Sher ka bachcha hai tu
Jigar bada hai tera.
Sahitya ki duniya mein aa hi gaya hai tu
Ab machega tahalka tera.
मैं जानता हूँ, तहलका तभी मचेगा जब सही और जरूरी चीजों को मनमोहक रूप से लिख कर पेश किया जाएगा । मैं जरूर इसका प्रयत्न करूंगा । लगता है – मेरा हिम्मत, मेहनत, लगन और सृजनशक्ति मुझे काफी दूर तक ले जाएगा । फिर से पीठ थप-थापाना चाहता हूँ खुद का । मेरा हौंसला बुलंद करने के लिए फिर से और एक लघु कविता चार लाइनों का पेश कर रहा हूँ….
दीवाना
संभाल के कदम रखना
सोच समझ के चीजें लिखना
आज नहीं तो कल
लोग हो जाएंगे तेरा दीवाना ।
Deewana
Sambhal ke kadam rakhna
Soch samajh ke chijen likhna
Aaj nahin toh kal
Log ho jayenge tera deewana.
Posted by…
रतिकान्त सिंह
Ratikanta Singh