बार बार देखूँ और समझूँ तुझे
(लघु कविता)
(1)
बार बार देखूँ तुझे
नए तरीके से समझ ने को
जितना भी देखूँ तुझे
अपनापन ही दिखता है मुझे ।
…रतिकान्त सिंह
(2)
बादल और बरसात ही नहीं हो तुम
किरणें कहीं से ला के इंद्रधनुष बन जाते हो तुम
मन मोह लेती हो अंदाज ही अलग है
इस अदा पे तो दुनिया फिदा है ।
…रतिकान्त सिंह
(3)
हकीकत कुछ भी हो
वह बोलना और सुनना जानता है
हँसी-मज़ाक करे या ना करे वह
तीर सीधे लक्ष्य पे ही लगता है ।
…रतिकान्त सिंह
(4)
यह क्या नजारा है !
नजर अंदाज कोई कैसे करे
तुम जब साथ ना होती हो
सांस ही क्यों थम जाती है ?
…रतिकान्त सिंह
(5)
दूर तक कहानी पहुंची नहीं है
रोक सके तो रोक लो
ऐतराज कोई क्यों करे
ऐसी कहानी कभी कभी तो पैदा होती है ।
…रतिकान्त सिंह
(6)
घाट घाट का पानी पी कर भी
प्यासी अब तक क्यों रहती है ?
जिंदा है तू जिंदा रहेगी
लक्ष्य की हर जंग जय तू करते रहेगी ।
…रतिकान्त सिंह