(1)
मैं हूँ आदमी सीधा-साधा
झूठ मैं बोलता नहीं
सच से डरता नहीं
घबराता और डरता हूँ केवल फरेब से
बहुरूपीया बनना मैं जानता नहीं
नाटकबाज़ मैं हूँ ही नहीं
नौटंकी जानता नहीं
गिरगिट की तरह रंग बदलना
मुझे कतई आता नहीं
करूँ तो क्या करूँ
वोट किसके लिए डालूँ
जिसका भी नाम देखूँ
उसे इज्जत मैं कैसे दूँ
दुविधा घोर दुविधा
मेरा दोष केवल इतना
मैं हूँ आदमी सीधा-साधा ।
…रतिकान्त सिंह
(2)
वो सेवक मालिक बन जाता है
(i)
निर्वाचन की माहौल में
कैसे किसीको भरोसा करें
कीमती वोट को दे देने पर
दाम घट ही जाता है ।
(ii)
निर्वाचन के बाद कोई पूछता नहीं
कोई सुनता नहीं
पाशा ही पलट जाता है
सेवक बनके जो आया था द्वार पे
मालिक बनके द्वार से भागाता है ।
(iii)
लोग निर्वाचित जब हो जाते हैं
उन्हे सवाल पूछने को डर लगता है
हमसे ही वोट लेकर ताकतवर वो बन जाते हैं
हमारे प्रतिनिधि जो सेवक के रूप में आये थे
आज सेवक नहीं मालिक बनके हमे चलाते हैं ।
…रतिकान्त सिंह
(3)
दो दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात है हम सबके लिए
निर्वाचन का माहौल है
भाषण ही भाषण
चारों और घमासान भाषण
जो कभी न सुना था
सुनने को अब मिलता है घन घन
आम-जनता अब खास लगने लगा है उन्हें
पर – दो दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात है हम सबके लिए ।
…रतिकान्त सिंह
(4)
देश का मति और गति
देश का मति बदला है न देश का गति ?
ये सवाल कौन पुछेगा और जवाब कौन देगा ?
जवाब सठिक है या नहीं कौन बतायेगा ?
आजतक इस चक्र्ब्यूह में जनता फंस के रह गया है
आज़ादी के सत्तर साल के बाद भी ये सवाल खड़ा है
जहां खड़ा था वहीं पे ही खड़ा है ।
…रतिकान्त सिंह
(5)
नेता-अभिनेता
इस निर्वाचन का माहौल में
नेता, अभिनेता बनता जा रहा है
अभिनेता भी नेता के पथ पे आ गया है
जनता जिसे जनार्दन कहा जाता है
सत्ता पे आने के बाद आँखों की नजर बदल जाता है
जनार्दन को अनादर, भर्त्सना और मृत्यु मिलता है
जो है, सो है, बोलना तो जरूर पड़ेगा
डर लगता है, दुख होता है
फिर भी खुद को हिंदुस्तानी कहना पड़ता है
और वोट देना हमारा कर्तव्य है ।
…रतिकान्त सिंह