जियो तो जियो शान से
(दारुवाला दोस्त – एक काल्पनिक काहानी)
काफी कोशिश कर रहा है
दारू छोड़ना चाहता है
पहले पहले जब वो जवान था
हर किस्म का दारू घर में रखा करता था
दारू के ज्ञान से लोगों को impress किया करता था
Boss लोग पसंद ही नहीं इनाम भी देते थे
सही वक्त पे प्रमोशन भी पाया
बहुत कुछ काम दारू से निकाल लिया
अब दारू वह पिता है या दारू उसे पी रहा है!
यह समझ पाना मुश्किल है
लगता है अब वह चाहता है दारू से मुक्ति
ज़िंदगी में सब कुछ पाके भी लगता उसे कुछ नहीं मिला
जीना चाहता है, अब पछता रहा है
लगता दारू ने बहुत कुछ दिया जरूर है
लेकिन उससे कई गुना ज्यादा ले लिया है
यही हकीकत है
दारू जानलेवा है
Cancer लेके आता है
दर्दनाक मौत को न्योता देता है।
साथियों !
ये कविता नहीं, हकीकत है
काल्पनिक घटना पर आधारित काहानी है
कुछ चीजे ज़िंदगी में आना ही नहीं चाहिए
आ भी गया तो control होना चाहिए
कल से control करूंगा
कल से दारू छोड़ दूंगा
ऐसा कहने वाले एक ढूंडो हजार मिलेंगे
कमजोर इंसान ज्यादा मिलेंगे
तुम आम आदमी हो या खास आदमी हो
कमजोर आदमी हो या ताकतवर आदमी हो
इज्जतदार आदमी हो या घटिया आदमी हो
इसका तय तुम्हें ही करना है
वरना – सब कुछ होते हुए भी
लगेगा कुछ भी नहीं है
ज़िंदगी लगेगा बेकार
हाँ, दोस्तों
ये ज़िंदगी अपना जरूर है
पर हमारे कर्म का फल बुरा हो या अच्छा
औरों को भी भुगतना पड़ता है
तुम्हारा अभ्यास से
उन्हे तो शरम भी लगता है
सोचो जरा…
परिवार को शर्मिंदा बनाने
औरों को उंगली उठाने का मौका देना चाहिए क्या?
हाँ, दोस्तों
जियो तो जियो शान से
परिवार वाले गर्व करे तुम पे
सही अभ्यास हो आप सभी का
कोई ना बुरा पाये आपको।
*******
हिन्दी कवि – रतिकान्त सिंह