एक supervisor
दंड
नियम
राजू भैया
रतिकान्त सिंह की हिन्दी कवितायें
(जो मुझे दिखाई देती और सुनाई देती) – (10) 

(1)
(नाराज)
ज्यादा नाराज होना सीख नहीं पाया
थोड़ा नाराज कभी-कभार हो जाता हूँ
नाराज तो लोग हम से होते हैं
क्योंकि, रिश्ते में छोटे उम्र से ही
सही मायने में बुजुर्ग का role अदा करता आ रहा हूँ । 

(2)
(एक Supervisor)
हमारा एक supervisor है
Mouth अपना रखते हैं shut up/बंद
दूसरों से करवाते हैं follow-up, follow-up
Top में supervisor बनके खुश बैठा है
दिनभर दो-चार काम करता 
मुशिकल से एक या दो signature मारता
Letter उसके पास आए तो लिख देता
Please look into the matter and take care. 

(3)
(दंड)
एक आदमी ने मुझे दुखी होके कहा…
आजकाल दंड देने का काम नियम कानून का नहीं रहा
सारे संसार में दंड प्रकृति ही दे रही है
कहीं बाड़, कहीं प्रचंड गर्मी तो कहीं घूर्णी वात्या चला आता है
उस आदमी ने ध्यान से कहा…
प्रकृति पक्षपात नहीं करती, जात-पात नहीं देखती
थोक की भाव से सबको समान कर देती
हाँ, कुदरत के सामने किसी का नहीं चलता । 

(4)
(नियम)
एक संस्था के बुजुर्ग ने कहा…
नियमों का धज्जियाँ उड़ाना नियम नहीं
कभी-कभी ये देखने पर सांस रुक जाता है
पर, अब सांस को भी समझ में आ गया
नियमों की धज्जियाँ उड़ाना ही नियम है । 

(5)
(राजू भैया)
हमारे उडिशा के नेता राजू भैया जब हिन्दी में भाषण मारते हैं
उन्हे मालूम है भाषण का लिङ्ग बहुत बार परिवर्तन होता जाता है
लोग उनपर हँसते हैं, मगर वो परवाह करते नहीं
लेकिन राजू भैया, जिस मुद्दे पर भाषण मारते हैं
उस मुद्दे पर टीके रहते, और गिरगिट की तरह रंग नहीं बदलते हैं । 

 

हिन्दी कवि

रतिकान्त सिंह

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